भौडागढी, तिरहुत सरकार की पहली राजधानी थी और करीब 200 साल तक तिरहुत की सत्ता यहीं से चलती थी। दरभंगा प्रमंडल के मधुबनी जिले में भौडागढी एतिहासिक और पुरात्वविक महत्व का अदभुत केंद्र है। भारत में खंडवाला राजवंश
को छोड कर किसी राजवंश के पास यह आधिकारिक जानकारी नहीं है कि उसका पहला डीह कौन सा है। तिरहुत सरकार की पहली राजधानी भौडागढी का इतिहास अब तक अनजाना सा ही है। मुगल बादशाह ने मिथिला के गरीब पंडित महेश ठाकुर को तिरहुत का राज 1556 के आसपास दिया था, लेकिन महेश ठाकुर जब तक राज पाट समझते 1558 में उनका निधन हो गया। उनके बाद उनके बडे पुत्र गोपाल ठाकुर राजा बने, लेकिन वो भी अधिक दिनों तक राज नहीं कर सके और उनका भी जल्द ही निधन हो गया। वे नि:संतान थे, इसलिए महेश ठाकुर के दूसरे बेटे परमानंद ठाकुर को सिंहासन मिला, लेकिन इन्हें भी पुत्र नहीं हुआ और अल्पआयु में ही निधन हो गया। इसके बाद तीसरे और चौथे पुत्र ने राजा बनने से इनकार कर दिया और महेश ठाकुर के सबसे छोटे बेटे शुभंकर ठाकुर राजकाज संभालने को तैयार हुए। इसी दौरान उन्हें डीह बदलने की सलाह मिली और वो भौडग्राम(राजग्राम) से भौडागढी आ गये और यहां अपनी नूतन राजधानी बनायी। उन्होंने राज में लगान को नियमित करना शुरु किया और आसपास के राजवारे सक्रिय होने लगे। 1607 में उनके निधन के बाद पुरुषोत्तम ठाकुर पिता की जगह राजा बने। 1623 में पडोसी राज्य नेपाली ने तिरहुत पर आक्रमण कर दिया। इस दौरान तिरहुत सरकार पुरुषोत्तम ठाकुर वीरगति को प्राप्त हुए। खंडवाला कुल में वो अकेले राजा हैं, जो युद्ध के दौरान मारे गये। पुरुषोत्तम ठाकुर के बेटे नारायण ठाकुर और फिर रघु ठाकुर तिरहुत के सिंहासन पर बैठे। 1700 से 1736 के दौरान रघु ठाकुर ने तिरहुत की न केवल सीमा विस्तार किया, बल्कि भौडागढी में महल और किले का भी निर्माण कराया। वर्तमान महल उसी नींव पर बना है। कहा जाता है कि यह बिहार में जमीन के ऊपर बना सबसे पुराना महल है। इसकी नींव तो 1736 के पूर्व की है, लेकिन इसका वर्तमान स्वरूप भी 1880 के आसपास का है। वैसे 1762 में राजा प्रताप सिंह ने तिरहुत की राजधानी भौडागढी से दरभंगा ले आये। वैसे राजा नरेंद्र सिंह ही दरभंगा में सिंहासन ले जाने की मंजूरी दे चुके थे। ठीक 200 साल बाद 1962 को खंडवाला राजवंश के आखिरी राजा कामेश्वर सिंह का निधन हो गया। भौडागढी में 110 एकड में फैला राज महल के अलावा खंडवा से लायी गयी काली की प्रतिमा है। साथ ही 20वीं शताब्दी में यहां एक छोटा सा एयरपोर्ट का भी निर्माण कराया गया था। सब कुछ मरनासन्न है ...
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को छोड कर किसी राजवंश के पास यह आधिकारिक जानकारी नहीं है कि उसका पहला डीह कौन सा है। तिरहुत सरकार की पहली राजधानी भौडागढी का इतिहास अब तक अनजाना सा ही है। मुगल बादशाह ने मिथिला के गरीब पंडित महेश ठाकुर को तिरहुत का राज 1556 के आसपास दिया था, लेकिन महेश ठाकुर जब तक राज पाट समझते 1558 में उनका निधन हो गया। उनके बाद उनके बडे पुत्र गोपाल ठाकुर राजा बने, लेकिन वो भी अधिक दिनों तक राज नहीं कर सके और उनका भी जल्द ही निधन हो गया। वे नि:संतान थे, इसलिए महेश ठाकुर के दूसरे बेटे परमानंद ठाकुर को सिंहासन मिला, लेकिन इन्हें भी पुत्र नहीं हुआ और अल्पआयु में ही निधन हो गया। इसके बाद तीसरे और चौथे पुत्र ने राजा बनने से इनकार कर दिया और महेश ठाकुर के सबसे छोटे बेटे शुभंकर ठाकुर राजकाज संभालने को तैयार हुए। इसी दौरान उन्हें डीह बदलने की सलाह मिली और वो भौडग्राम(राजग्राम) से भौडागढी आ गये और यहां अपनी नूतन राजधानी बनायी। उन्होंने राज में लगान को नियमित करना शुरु किया और आसपास के राजवारे सक्रिय होने लगे। 1607 में उनके निधन के बाद पुरुषोत्तम ठाकुर पिता की जगह राजा बने। 1623 में पडोसी राज्य नेपाली ने तिरहुत पर आक्रमण कर दिया। इस दौरान तिरहुत सरकार पुरुषोत्तम ठाकुर वीरगति को प्राप्त हुए। खंडवाला कुल में वो अकेले राजा हैं, जो युद्ध के दौरान मारे गये। पुरुषोत्तम ठाकुर के बेटे नारायण ठाकुर और फिर रघु ठाकुर तिरहुत के सिंहासन पर बैठे। 1700 से 1736 के दौरान रघु ठाकुर ने तिरहुत की न केवल सीमा विस्तार किया, बल्कि भौडागढी में महल और किले का भी निर्माण कराया। वर्तमान महल उसी नींव पर बना है। कहा जाता है कि यह बिहार में जमीन के ऊपर बना सबसे पुराना महल है। इसकी नींव तो 1736 के पूर्व की है, लेकिन इसका वर्तमान स्वरूप भी 1880 के आसपास का है। वैसे 1762 में राजा प्रताप सिंह ने तिरहुत की राजधानी भौडागढी से दरभंगा ले आये। वैसे राजा नरेंद्र सिंह ही दरभंगा में सिंहासन ले जाने की मंजूरी दे चुके थे। ठीक 200 साल बाद 1962 को खंडवाला राजवंश के आखिरी राजा कामेश्वर सिंह का निधन हो गया। भौडागढी में 110 एकड में फैला राज महल के अलावा खंडवा से लायी गयी काली की प्रतिमा है। साथ ही 20वीं शताब्दी में यहां एक छोटा सा एयरपोर्ट का भी निर्माण कराया गया था। सब कुछ मरनासन्न है ...
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1 टिप्पणियाँ:
is this place open for public..?
how can we reach there..?
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