शुक्रवार, 4 सितंबर 2015

महाराजा कामेश्‍वर सिंह का तिरहुत के लोगों के लिए जारी सार्वजनिक पत्र का हिंदी में अनुदित अंश

जीवंत इतिहास


1950 में जमींदारी उन्‍मूलन के बाद इंडियन नेशन में प्रकाशित महाराजा कामेश्‍वर सिंह का तिरहुत के लोगों के लिए जारी सार्वजनिक पत्र का हिंदी में अनुदित अंश।


पूर्व रैयतगण,
लगभग 400 वर्ष पूर्व भारत के सम्राट अकबर मेरे पूर्वज म.म.उपाध्याय महेश ठाकुर को उनके पांडित्य से मुग्ध होकर 'सरकार -ए -तिरहुत ' का शासन भार दिया था। अंग्रेजी आधिपत्य स्थापित होने से पहले तक कुलाचार के अनुसरण करते हुए मेरे पूर्वजगण उसी रूप में इस क्षेत्र पर राज करते रहे। ईस्ट इंडिया कम्पनी तत्कालीन मेरे पूर्वज को शासनाधिकार से वंचित करने का प्रयास किया। 20 वर्ष तक संघर्ष चला। लेकिन जो शक्ति भारत के सम्राट का आसन डोला सकती है उससे हम कहां तक लडते। अपेझाकृत न्यून शासनाधिकारिक पर सुलह हुआ और उसके परिणामस्वरूप पहले क्षेत्र का पचमांश क्षेत्र पर मेरे पूर्वज को जमींदारी का हक़ दिया गया। राजस्व मलेहाजी निश्चित किया गया और जो भू -भाग अपहरण हुआ था उसको स्वीकार करते हुए अंग्रेज सरकार निश्चित रूप से मालिकाना हक देने को राजी हुआ। तब से आज तक उसी रूप में सम्बन्ध हमारे और आपके बीच वंशानुक्रम चला आ रहा था। इस बीच में रैयती कानून सब से, कृषि कर तथा सेस वृद्धि के कारण वस्तुस्थिति मे महान परिवर्तन आ चुका है, तथापि बाहरी रूप रेखा यथास्थित है।
गत पंद्रह वर्ष से व्‍यक्तिक जमींदारी प्रथा का अंत करने के लिए देशव्‍यापी उद्योग जोर-शोर से हो रहा है। आज शासन - सत्ता जनता के हाथ में है। जनता जिनको अपन प्रतिनिधि बनाये शासन करने का भार दे वही होगा। जनता के अधिकांश प्रतिनिधि इस प्रथा का अन्त शीघ्रताशीघ्र चाहते हैं। कुछ दिन पूर्व इस विषय पर अंतिम फैसला हुआ। इस प्रकार व्यक्त जनता की इच्छा का अवहेलना कोन देशभक्त नागरिक कर सकता है ? किसीको अधिकार देना या किसी से अधिकार लेना सुव्यवस्थित परिस्थिति मे शासन -सत्ताधिकारिक हाथ मे रहना है। अतएव, बिहार जमींदारी उन्मूलन कानून को ,जिसको बिहार के उच्च न्यायलय ने अवैध घोषित कर दिया था , वैध बनाने को … संविधान में संशोधन कर जायज बना दिया गया, तब मैंने भारत के प्रधानमंत्री श्री जवाहर लाल नेहरू को पत्र लिखकर सूचित कर दिया कि मैं न्यायलय की शरण में अब नहीं जाउंगा, वो अब जो न्याय -संगत समझें कर लें। फलतः बिहार जमींदारी उन्मूलन कानून लागू कर दी गयी और यह प्राचीन राज सरकार ए तिरहुत बिहार सरकार के हाथ मे चला गया।
आप लोगों से वंशपरम्पराक इतना दिन रहा कि संबंध छुटने का हमें असीम दुःख है, परन्तु संतोष केवल इस विषय को लेकर है कि जो हमरे और आपके बीच मतभेद थे वो अब नहीं रहेंगे और वर्गभेद के कारण जो विषमता अनिवार्य रूप से उत्पन्न हो गया था वो अब नहीं रहेगा। इससे हो सकता है आनेवाले दिनों में हमारे संबंध पहले से ज्‍यादा मधुर हो जायें। हमारे बीच और घनिष्ठता आ जाये। हम इस अवसर पर इतना ही कहेंगे कि हम से या हमारे कर्मचारीगण से अगर कोई त्रुटि हो गयी हो तो उसे भूलने की उदारता दिखायें और मालिक के स्वरुप में नही भाई के स्वरुप में सदा हमें देखें और हमारे परिवार के लोगों को आप लोग अपने परिवार की तरह स्‍नेह दें।
--श्री कामेश्वर सिंह
सरकार ए तिरहुत

5 टिप्पणियाँ:

Shyam Anand Jha ने कहा…

यह एक महत्वपूर्ण चिठ्ठी है। महाराज कामेश्वर सिंह संभवत: अपने समय के सबसे उदार और प्रगतिशील सामंत थे। क्या इस चिट्ठी मूलत: मैथिली में लिखी गई थी? मेरी इच्छा है कि इसे मैं इसकी मूल भाषा में पढूं।

Unknown ने कहा…

Maharaj Kameshwar Singh jee ka barappan aur tirhut ke janta ke prati unka sneh shayad hi ab kisi janta dwara chune pratinidhi se milega. Aazadi ke Naam par hamne apne hi haatho se apne pairo me gulami ki janjeer daal rakhi hai.

Unknown ने कहा…

Maharaj Kameshwar Singh jee ka barappan aur tirhut ke janta ke prati unka sneh shayad hi ab kisi janta dwara chune pratinidhi se milega. Aazadi ke Naam par hamne apne hi haatho se apne pairo me gulami ki janjeer daal rakhi hai.

Unknown ने कहा…

Maharaj Kameshwar Singh jee ka barappan aur tirhut ke janta ke prati unka sneh shayad hi ab kisi janta dwara chune pratinidhi se milega. Aazadi ke Naam par hamne apne hi haatho se apne pairo me gulami ki janjeer daal rakhi hai.

Unknown ने कहा…

Jai ho mahadaani
... Aap vastav mein loktantra ke purodha the.... Jaihind

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