शुक्रवार, 13 नवंबर 2015

उपेक्षांजलि - दरभंगा एक खोज

darbhanga palace, bihar
राज दरभंगा का एक नायाब धरोहर


दरभंगा संस्कृत के दारू-भंग (लकडी को काट कर बना शहर) से उदभूत हुआ शब्‍द है। फारसी में इसके लिए दर-ए-बंग लिखा जाता है। लेकिन बंगाल के साहित्यिक, सामाजिक,ज्योतिषीय रचनाओं में दरभंगा को आज भी द्वार-बंग ही संबोधित किया जाता है। 1402 ई में महाकवि विद्यापति के संरक्षक राजा शिव सिंह के जौनपुर के शार्की सुल्तान के द्वारा पराजय यानि राजा के दल-भंग से दरभंगा का उदभूत होना तर्क संगत नहीं है। इसका कोई ऐतिहासिक साक्ष्य भी नहीं
है। इतना ही नहीं, जिस दरभंगी खान के नाम पर दरभंगा होना विलिअम हंटर के 1877 के रिपोर्ट ओ मेली के दरभंगा गजेटियर 1907 और दरभंगा सर्वे सेटलमेंट रिपोर्ट 1908 में उल्‍लेखित है, वह दरभंगी खान का असल नाम था गुलाम जैनुल आबेदीन जिनके दादा थे 18 वी सदी के बंगाल नवाब अलीवदीज़् खांके दरबारी रहम खान रोहिल्ला. अत: दरभंगी खान के नाम पर दरभंगा होना एकदम बेतुका और बकबास है।

हाल में फेसबुक पर श्री भवनाथ झा ने यह जानकारी उपलब्ध करायी कि संस्कृत रचना रुद्रयामल में दरभंगा के लिए दर्भांग शब्द का प्रयोग किया गया है। दूर्भांग यानि दूर्भ क्षेत्र यानि कुश क्षेत्र जहाँ कुश ही कुश हो। कुछ सदी मात्र पूर्व तक दरभंगा बस्तुत: कुश से भरा पड़ा था। पश्चिम में बागमती और पूरब तथा उत्तर में कमला कि धाराओं के बीच अवस्थित दरभंगा में इतनी चौर/निम्न भूमि थी जिसमे कुश का होना एकदम स्वाभाविक था। श्री गजनन मिश्र लिख्‍ाते हैं कि उनके अनुज श्री मोदनाथ मिश्र का पुत्र चि मीकु जो संस्कृत भाषा भी पढ़ रहा है, ने बताया कि रुद्रयामल की चर्चा ज्योतिरिस्वर के वर्ण रत्नाकर में है। वर्ण रत्नाकर आरंभिक 14 वी सदी की रचना है। दरभंगा जैसा सैन्य केंद्र 8 -9 वी सदी से 11-12 वी सदी के बीच कुश कंटकाकीर्ण होने के कारण दूर्भांग कहा गया हो तो कोई अस्वाभाविक नहीं। यह बिलकुल तर्कसंगत लगता है। संभव है 8 वी-12 वी सदी के संस्कृत रचना में दूर्भांजंग का उल्लेख भविष्य में मिल जाय।

वैसे दरभंगा का प्रथम उल्लेख भारत के फारसी भाषा के पहला इतिहास ग्रन्थ- तबकात-ए-नासिरी जो मिन्हाज़-उस-सिराज द्वारा 1267 ई में लिखा हुआ मिलता है। उसमे लिखा गया है कि 1225 ई में तत्कालीन दिल्ली सुल्तान इल्तुतमिस के विजित क्षेत्रों में अन्य के अलाबे बिहार, तिरहुत और दरभंगा शामिल था। इसी तरह 16 वी सदी में मुग़ल सम्राट अकबर के दरबारी मुल्ला तकिया जो दरभंगा भ्रमण कर अपना बयाज़ यानि डायरी लिखे जिसका उर्दू रूपांतरण करते हुए दरभंगा पर अपना आलेख 1949 ई में उर्दू पत्रिका मासिर में दरभंगा के ही विद्वान श्री इलियास रहमानी ने प्रकाशित कराया। उसमें उल्लेख किया गया है कि दरभंगा में कनार्ट वंशीय राजा गंग देव ने अपनी राजधानी बनायीं। तिरहुत राजा गंग देव का शासन लगभग 1150 ई में आरम्भ होता है. अत: 12 वी सदी में ही दरभंगा नाम चलन में था।

7वी से 12 वी सदी के बीच दरभंगा या तिरहुत पर बंगाल के प्रथम पाल वंश और बाद में सेन वंश का शासन होना स्थापित तथ्य है। दरभंगा से बहेरी-सिघिया-रोसड़ा-बलिया-मुंगेर, दरभंगा-नगरबस्ती-दलसिंहसराय-मौऊ बाजितपुर- बलिया-मुंगेर तथा दरभंगा-झंझारपुर-मधेपुर-परसरमा-नाथपुर/बिरनगर बिसहरिया-पुरनिया-ताजपुर-गौर/सुवणज़्ग्राम( बंगाल) के पृथक पृथक सड़क प्राचीन काल से उपयोग में हैं। गौर बंगाल को चाहे हिन्दू काल हो या मध्यकालीन मुस्लिम अवधि- उसे हमेशा ही पश्चिम के दिल्ली,अबध,पाटलिपुत्र,जौनपुर, साकेत के हिन्दू अथवा मुस्लिम राजाओं से अपनी प्रतिरक्षा करनी परती थी अथवा बंगाल के अनेक शक्तिशाली राजाओं ने पश्चिम पर आक्रमण कर विजय प्राप्त की; दोनों ही स्थितियों में दरभंगा में अपना सैन्य केंद्र बनाकर बंगाल के लिए अपनी रक्षा करना या यहाँ से आक्रमण करना रणनीतिक लाभ था। पूर्णिया तो लगभग 1800 ई तक बंगाल में ही था, मुंगेर तक बंगाल का सीधा नियंत्रण भी सम्राट अकबर से पहले तक था। पश्चिम के पाटलिपुत्र,बनारस,अबध,जौनपुर,दिल्ली के लिए दरभंगा से सडक तो प्राचीन काल से प्रचलन में है। इसलिए दरभंगा हिन्दू काल में द्वार बंग था या मुस्लिम काल में दर-ए-बंग तो अस्वाभाविक नहीं।

यही रणनीतिक स्थिति थी कि 1326 ई में दिल्ली सुल्तान मुहम्मद बिन तुगलक ने दरभंगा में किला बनाकर, यहाँ फौजदार बहालकर और यहाँ एक टकसाल कि स्थापना कर इसे एक सैन्य केंद्र यानि विलायत बनाया। ऐसे में पुख्‍ता तौर पर नहीं कहा ज सकता कि इस शहर की स्‍थापना किसने की और किसका मूल नाम कब रखा गया।

Topic : How Darbhanga Got its Name

4 टिप्पणियाँ:

xai ने कहा…

Good. I have read same in some Urdu books. Dar e bang means door to bangal. Thanx for this article.

@ ह ह ह ने कहा…

Bahut achchi jankati mily thanks

Madhvendra Lal Vema ने कहा…

दरभंगा के इतिहास की " खोजी जानकारी " जिज्ञासा पर कुछ मरहम तो लगा गया पर जिज्ञासा की प्रयास और बढ़ गयी !
फिर इस प्रयास को सलाम,नमन् !
इस पर और गहन खोज की आवश्यकता है,आशा करता हूँ और भी कोई आगे बढ़कर बंगाल और लखनऊ के पुस्तकालयों में
धूल में दबे इतिहास को समेटे ऐतिहासिक प्रमाणों को ढूंढ कर, प्रमाणिक तथ्यों को उजागर कर हम सभी को लाभान्वित करेगा !!!!!

Sanjeev Kumar singh ने कहा…

नाम संबंधित तर्कसंगत नहीं है, फिर लोग पढ़कर जानकार बन रहे हैं।

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