सोमवार, 19 जनवरी 2015

महाराजा लक्ष्मेश्वर सिंह की प्रतिमा, योगदान और व्यक्तित्व

कोलकाता में स्‍थापित तिरहुत सरकार महाराजा लक्ष्‍मेश्‍वर सिंह की यह प्रतिमा एक मायने में देश में अकेली और अनोखी प्रतिमा कही जा सकती है। इस प्रतिमा का अनावरण करने भारत के वायसराय द अर्ल ऑफ एल्गिन जब आये तो उन्‍हें यह जानकार आश्‍चर्य
हुआ कि तिरहुत के महाराजा की प्रतिमा को कलकत्‍ता में स्‍थापित करने के लिए कलकत्‍ता के आम लोगों ने अपने खर्चे से बनवाया है। यह देश में एक मात्र उदाहरण है जब किसी दूसरे प्रांत के लोगों ने पैसे जमा कर किसी दूसरे प्रांत के राजा की प्रतिमा स्‍थापित की हो। यह कलकत्‍ता के प्रति तिरहुत का और तिरहुत के प्रति कलकत्‍ता का संबंध बताता है। इस इलाके को यूनेस्‍को ने धरोहर घोषित कर रखा है।

लोकतंत्र में भी किसी की मूर्ति जनता यूं ही अपने पैसे से नहीं लगा देती है, फिर वो जमाना तो राजाओं का था। कोलकाता की जनता ने अगर अपने पैसे से तिरहुत सरकार की मूर्ति चौराहे पर लगा दी] तो यह जानने की इच्छा जरूर बढ जाती है कि आखिर इन्होंने ऐसा क्या किया, जो राज्‍य के बाहर की जनता भी इन्‍हें अपना आदर्श मानने से परहेज नहीं किया। दरअसल तिरहुत सरकार लक्ष्मेश्वर सिंह महज 50 वर्ष की उम्र में स्व‍र्गवासी होने से पूर्व कई सामाजिक और वैज्ञानिक क्रांति की शुरुआत की। बहु विवाह पर रोक लगाने के लिए इन्होंने अपने कार्यकाल में दंड का प्रावधान किया। गौ रक्षा संघ के संस्थापक बने। अंग्रेजी शिक्षा व एलोपैथी चिकित्सा को बढावा दिया। इनके कार्यकाल में ही अंग्रेजी स्कूल व मेडिकल डिसपेंसरी की स्थापना हुई। भारत में जैविक क्रांति के अगुआ रहे और जर्सी गाय की नस्ल इनके कार्यकाल की सबसे बडी देन है। तिरहुत स्टेट रेलवे की स्थापना कर इन्होंने तिरहुत में विकास की एक नयी लकीर खींच दी। तिरहुत सरकार लक्ष्मेश्‍वर सिंह ने ही तिरहुत में औद्योगिक क्रांति का सबसे पहले सपना देखा। दरभंगा सूत कारखाने की स्थापना और नील की खेती खत्म करने का सैद्धांतिक फैसला उनके विकास मॉडल को रेखांकित करता है। इंपिरियल कॉउंसिल के पहले भारतीय सदस्य रहे तिरहुत सरकार लक्ष्मेश्वंर सिंह बहादुर साह जफर के बडे पोते को राजनीतिक संरक्षण देकर राष्ट्रीय स्‍तर पर स्‍वतंत्रता आंदोलन को जिंदा रखने का एलान किया। अफ्रीका में गांधी को मदद करनेवाले पहले भारतीय बने। कांग्रेस के पालनहार बन कर उसकी नींव मजबूत की। पूणा सार्वजनिक सभा के संरक्षक बने। रूलिंग किंग का दर्जा नहीं मिलने के बावजूद कोलकाता में गवर्नर से सलामी लेनेवाले तिरहुत सरकार हिंदू-मुस्लिम एकता के भी प्रतीक माने जाते हैं।

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