गुरुवार, 15 जनवरी 2015

वास्‍तुशिल्‍प का अनुपम प्रयोग है खंडहरों का शहर - राजनगर

यह राजनगर है। खंडहरों का शहर राजनगर। खंडवाला राजवंश की आखिरी डयोढी राजनगर। इस का निर्माण महाराजा महेश्वर सिंह के छोटे बेटे रामेश्वर सिंह के लिए कराया गया था। भारत नेपाल सीमा से सटे इस शहर को बसाने की योजना 1870 के आसपास बनी। तिरहुत सरकार महाराजा लक्ष्मेश्वर सिंह ने
अपने छोटे भाई रामेश्वर सिंह के लिए महलों और मंदिरों से इस शहर को सजाने का फैसला किया। कहने को यह आज दरभंगा प्रमंडल और मधुबनी जिले का एक प्रखंड मुख्यालय मात्र है, लेकिन इसकी पहचान अपने आप में अलग है। भारत में सबसे पहले सीमेंट का प्रयोग राजनगर के भवन निर्माण में यही हुआ। जिस प्रकार दिल्‍ली को लूटियन से बनाया, उसी प्रकार राजनगर को ब्रिटिश वास्तुकार डॉ एम ए कोरनी ने मन से बनाया था। कहा जाता है कि कोरनी तिरहुत के कर्जदार थे और कर्ज चुकाने के बदले उन्‍होंने अपने हुनर को यहां ऐसे उकेरा कि वो वास्‍तुविदों के आदर्श बन गये। राजनगर राज का महल ही नहीं सचिवालय भी तिरहुत सरकार के किसी दूसरे इमारत से बडा है। साथ ही अदभुत वास्तुशिल्पी का नमूना है। इसके साथ ही यहां कई महत्वपूर्ण मंदिरों का भी जाल बिछा है। तंत्र साधना में काली का अंतिम रूप (शिव की छाती से उतर कमल के फूल पर मुस्कुराती काली) विश्व में केवल यहीं देखी जा सकती है। कहा जाता है कि महान तांत्रिक महाराजा रामेश्वर सिंह अपनी तंत्र साधना की पूर्णाहूति के बाद काली के इस अंतिम रूप को यहां स्थापित किया था। अमावस की रात मारवल जैसी चमक मां की इस मंदिर को ताजमहल से भी ज्‍यादा हसीन बना देती है। कहने को लक्ष्मेश्वर सिंह की मौत के बाद रामेश्वर सिंह राजनगर से दरभंगा चले गये, लेकिन दस्‍तावेज बताते हैं कि राजनगर को बसाने की प्रक्रिया 1926 तक चलती रही। निर्माण की प्रक्रिया खत्म होते ही 1934 के भूकंप ने इस पूरे शहर को तहस-नहस कर दिया। भकंप ने इस शहर को गुलजार होने से पहले ही खंडहर में बदल दिया। 15 जनवरी, 1934 के भूकंप का राजनगर ही केंद्र था। बाद में यह विरासत रामेश्वर सिंह के छोटे बेटे विशेश्वर सिंह को सौंपी गयी। विशेश्वर सिंह के तीनों बेटों ने इस डयोढी का बहुत सारा हिस्सा बेच डाला। नया शहर तो नहीं बसा, लेकिन कस्बा आज जरूर फैलता जा रहा है। विशेश्‍वर सिंह के पोते इन खंडहरों को बचाने की पहल करेंगे...बस यही दुआ है। क्‍योंकि 130 साल से अधिक पुराने इस महलों के प्रति जहां राज्‍य सरकार उदासीन है, वहीं केद्र सरकार को तो मानो पता भी नहीं है कि इस देश में कोई ऐसी जगह भी है। पर्यटन के किसी मानचित्र पर राजनगर आज तक नहीं उकेरा गया है।...आप अगर चाहते हैं कि दुनिया राजनगर को देखे तो इसे शेयर कर सकते हैं, किसी का कॉपीराइट इसपर नहीं है।

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1 टिप्पणियाँ:

रमन दत्त झा ने कहा…

Ise Tourist Map pr lane ka pryas kare Bihar Govt.Mithila ke is Dhrohar ko sale karne se awilam rok lagyi jay.Mandiron ko Uchit dekhbhal or khandharon ke dekhrekh ho.
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