शुक्रवार, 12 दिसंबर 2014

लाल बाबू या लाल बालू मैदान .. सच क्या है ?

आज हम बात करेंगे एक ऐसी जगह की जो दो एतिहासिक घटनाओं का गवाह रहा, लेकिन इतिहास के पन्नों में उसक जिक्र उस अंदाज में नहीं हुआ। पूर्णिया और किशनगंज के रास्‍ते में आनेवाले लाल बालू मैदान
के नामकरण का इतिहास दरअसल 1857 के गदर से संंबंध रखता है। वैसे इस मैदान का संबंध 1933 के एवरेस्टग मिशन से भी रहा है। माउंट एवरेस्टे की चोटी के ऊपर से पहली बार जिस हवाई जहाज ने उडान भरी थी और चोटी की तसवीरें उतारी थी, वो हवाई हवाई यहीं से टेकऑफ किया था। 1933 के इसी अभियान से नेपाल के रास्ते एवरेस्ट की चोटी पर चढने का रास्ता तलाशा गया था। इंग्लैंस में मिले दस्तावेज के अनुसार इस अभियान को मधेपुरा के राजा रास बिहारी लाल यादव, बनैली के राजा कृत्यासनंद सिंह और तिरहुत सरकार कामेश्वर सिंह के सहयाग से लाल बालू मैदान, दरभंगा में अंजाम दिया गया। दस्तावेज में अक्षरों के मिट जाने के कारण बहुत दिनों तक लाल बालू को लाल बाबू के रूप में पढा जाता रहा। इसका मुख्य कारण इस एतिहासिक जगह के नामकरण का सही रूप में इतिहास नहीं लिखने के कारण हुआ। 1857 में अंग्रेजों ने बंगाल के विद्रोहियों को बलुआही माटीवाले इसी स्‍थान पर मौत के घाट उतारा था। कहा जाता है कि उस दौरान इतना खून बहा था कि यह पूरा इलाका लाल हो गया था। इस इलाके को उस कत्लेआम के बाद ही लोग लाल बालू मैदान के नाम से पुकारने लगे। हम जालियावाला बाग का इतिहास जानते हैं, लेकिन लाल बालू मैदान का दोनों इतिहास हमारे लिए अनजान सा ही है।

~ कुमुद सिंह

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