बुधवार, 10 दिसंबर 2014

समस्तीपुर के 'पूसा' के नामांकरण के पीछे का इतिहास

पूसा, समस्तीपुर 
जब भी समस्तीपुर होकर गुजरती हूं, पूसा की याद आती है। पूसा नामक जगह दरभंगा प्रमंडल के समस्तींपुर जिले में आता है। पूसा का नामकरण भी बडा रोचक है। यह नाम 1 अप्रैल,1905 में रखा गया। 1905 से पहले इस जगह को अस्ततबल नाम से जाना जाता था। एशिया का सबसे बडा
घोडा प्रजनन केंद्र 1799 में जहां स्थापित हुआ और 1854 में प्लेग के कारण उसे बंद करना पडा। इस संबंध में दुनिया के सबसे बडे घोडा प्रजनन केंद्र स्पेन में आज भी कई दस्तावेज मौजूद हैं। 1886 के आसपास जब पडौल में नील के खिलाफ आंदोलन शुरू हुआ, तो तिरहुत सरकार ने नील के विकल्प पर सोचना शुरू किया। तिरहुत में हरित क्रांति लाने के उद्देश्य से दो फैसले लिये गये। एक नील के बदले दूसरा नगदी फसल क्या हो और पडौल नील कारखाने की जगह कौन सा कारखाना लगाया जाये। इसी दौरान महाराजा लक्ष्‍मेश्वर सिंह का निधन हो गया। नये सरकार बने रामेश्वर सिंह। उनको बताया कि आनेवाला वक्त् जैविक खेती का है और अमेरिका में इसपर काम शुरु हो चुका है। रामेश्वर सिंह ने तत्काल तिरहुत में जैविक खेती से हरित क्रांति लाने का फैसला किया और जैविक खेती के शोधकर्ता Phipps से एक संस्थान तिरहुत में खोलने का आग्रह किया। पंडौल के पास लोहट में पहला चीनी कारखाना लगाने का काम शुरु हुआ। इस संस्थांन ने लोहट के लिए पहला जैविक फसल गन्ना के रूप में तैयार किया। इस प्रकार भारत में सबसे पहले गन्ना की जैविक खेती तिरहुत में शुरु हुई। इस संस्थान का नाम कृषि शोध संस्थान था, लेकिन जैविक खेती के कारण इसे Phipps form U.S.A (P U S A) के नाम से पूकारा जाने लगा। 15 जनवरी, 1934 के भूकंप में यह संस्थान ध्वस्त हो गया। 29 जुलाई 1936 को इस संस्थान को एक साजिश के तहत समस्तीपुर से दिल्ली ले जाने का फैसला हुआ। 1970 मे पूसा को दिल्ली से बिहार लाने की आखरी उम्मीद उस वक्त खत्म हो गयी, जब कांग्रेस सरकार ने यहां राजेंद्र कृर्षि विश्वविद्यालय खोलने का फैसला किया। Phipps form U.S.A (P U S A) हमेशा के लिए बिहार और तिरहुत से बाहर चला गया, रह गया तो केवल नाम...।

~ कुमुद सिंह

1 टिप्पणियाँ:

Rajesh Sharma ने कहा…

एक अच्छी जानकारी के लिए धन्यवाद.

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