मंगलवार, 28 अप्रैल 2015

तकनीकी शिक्षा और दरभंगा

technical institute darbhanga

आये दिन लोग इस बात को लेकर बहस करते हैं कि दरभंगा से छात्रों का पलायन हो रहा है। खासकर उन छात्रों का जो तकनीकी शिक्षा ग्रहण करते हैं। आज रोजगार पाने के लिए तकनीकी शिक्षा अनिवार्य हो चुका है, लेकिन यह बात गांधी 1930 के आसपास ही समझ गये थे। गांधी उसी वक्‍त कहा था कि कला महाविद्यालय से बेरोजगारी पैदा होगी, देश में रोजगार पैदा करने के लिए तकनीकी संस्‍थाएं खोलनी चाहिए। गांधी जानते थे कि उनका प्रभाव तिरहुत सरकार पर है और तिरहुत सरकार इस दिशा में ठोस पहल कर सकती है। एशिया में जैविक खेती के लिए समस्‍तीपुर में अंतरराष्‍ट्रीय स्‍तर
का शोध संस्‍थान खोलकर तिरहुत सरकार पहले ही देश में हरित क्रांति की नींव डाल चुकी थी। कारखानों की स्‍थापना से तकनीकी क्षेत्र में रोजगार के अवसर लगातार बढ रहे थे, ऐसे में तिरहुत सरकार ने गांधी को आश्‍वस्‍त किया कि वो तकनीकी शिक्षा को बढावा देंगे, लेकिन 1934 के भूकंप के बाद पूरा नजारा ही बदल गया। दरभंगा शमशान बन गया। किसी को समझ में नहीं आ रहा था कि नव निर्माण का काम कहां से शुरु किया जाये। अंतत: तिरहुत सरकार ने टेम्‍ले को एक सुव्‍यवस्थित शहर बसाने की जिम्‍मेदारी सौंपी। उस शहर में बाजार, रिहायशी इलाके, अस्‍पताल के साथ साथ शिक्षण संस्‍थाओं के लिए भी जगह निर्धारित की जानी थी, जगह निर्धारित हुई भी। लेकिन टाउन प्‍लान के साथ ही राजनीति शुरु हो गयी। दरभंगा के रूढीवादियों ने तंग गलियों को चौडी सडक में बदलने का विरोध शुरु कर दिया। इसी क्रम में गांधी के विरोधियों ने शहर में कला महाविद्यालय के लिए जमीन आरक्षित नहीं होने का मामला उठा दिया। तिरहुत सरकार ने गांधी का तर्क रखा कि कला से ज्‍यादा जरूरी दरभंगा के युवाओं के लिए तकनीकी संस्‍था है। विरोध इतना बढा कि शहर में दिल्‍ली के कॅनॉट प्‍लेस के तर्ज पर बनाया गया नया बाजार परिसर का लोगों ने बहिष्‍कार कर दिया और वहां कला महाविद्यालय खोलने के लिए आंदोलन शुरु कर दिया। इसबीच, शिक्षण संस्‍थाओं के लिए निर्धारित जमीन पर तकनीकी संस्‍थाएं खोलने की प्रक्रिया शुरु हुई। रुढिवादियों ने तकनीकी संस्‍थाओं को कला महाविद्यालय का दुश्‍मन घोषित कर दिया। इस बीच दरभंगा के इन आंदोलनकारियों को रांटी के जमींदार ने संरक्षण देकर 11 हजार रुपये कला महाविद्यालय खोलने को दे दिया। इसके बाद नगर निगम से 1 रुपये सालाना की लीज पर गोल मार्केंट लिया गया और दरभंगा में पहला कला महाविद्यालय की स्‍थापना हुई। तिरहुत सरकार दरभंगा के रुढिवादियों के इस कृत से बेहद निराश हुए। तिरहुत सरकार पहले तो उन्‍हें तकनीकी संस्‍थाओं के महत्‍व समझाने की कोशिश की और कला महाविद्यालय पर जोर न देने को कहा, लेकिन जब शहर के मुख्‍य बाजार में कॉलेज खोलने की साजिश सफल हो गयी, तो उन्‍होंने दरभंगा के आधारभूत ढांचे को बचाने की अपील करते हुए कहा कि आप लोग कहीं और जमीन देखिए हम कॉलेज खोलने में मदद करेंगे, लेकिन कृपया कर सरस्‍वती को बाजार (गोल मार्केट) में मत बैठाइये। तिरहुत सरकार की हर अपील को दरभंगा के रूढिवादियों ने मानने से इनकार कर दिया। अंतत: गोल मार्केट में खुले कॉलेज के आधारभूत संरचना को ठीक करने के लिए तिरहुत सरकार ने 50 हजार रुपये दिये, जो रांटी के जमींदार के 11 हजार रुपये के मुकाबले कहीं अधिक था। लेकिन दरभंगा के रुढिवादियों ने 50 हजार तो बेशर्मी से ले लिया, लेकिन कॉलेज खोलने का श्रेय रांटी के जमींदार को और तिरहुत सरकार को उस कॉलेज का विरोधी ही मानता रहा। इतना ही नहीं मधुबनी के जमींदार के संरक्षण से उत्‍साहित दरभंगा के रुढिवादियों ने तिरहुत सरकार को औकात बताने के लिए न केवल उन्‍हें शिक्षा का विरोधी साबित किया, बल्कि तिरहुत सरकार ने जिन तीन तकनीकी संस्‍थाओं की स्‍थापना की, उसका नामोनिशान मिटाने का प्रण भी सार्वजनिक तौर पर ले लिया। रुढिवादियों के हाथो बुरी तरह हार चुके तिरहुत सरकार ने अपनी मौत से कुछ माह पहले उस महल को संस्‍कृत शिक्षा के लिए दान कर दिया जहां उनका जन्‍म हुआ था। दरभंगा के रुढिवादियों के लिए वो एक माकूल जबाव था। आजाद भारत का पहला निजी यूनिवर्सिटी दरभंगा में संस्‍कृत जैसी रुढिवादी भाषा के संरक्षण के लिए खुला, जहां तकनीकी यूनिवर्सिटी की कल्‍पना की गयी थी। आज दरभंगा के वो छात्र जो लाखों खर्च कर दूसरे राज्‍यों में पढने जाते हैं, उन्‍हें इस बात की जानकारी तक नहीं है कि उनके शहर में कभी तकनीकी संस्‍थाओं की ऐसी नींव डाली गयी थी, जो आज बडे बटवृक्ष की तरह देश-विदेश में प्रसिद्ध होते। Engineering School, Industrial Training Institute and a Women’s Industrial School वो तकनीकी संस्‍थाएं हैं, जो दरभंगा मेडिकल स्‍कूल की तरह ही आज कॉलेज व यूनिवर्सिटी में बदल गये होते। ये सभी संस्‍थाएं तिरहुत के युवाओं को तकनीकी शिक्षा में अगुआ बनाने के लिए स्‍थापित की गयी थी, लेकिन गोल मार्केंट में सरस्‍वती को बैठानेवाले शिक्षा को इतना बाजारू बना दिया कि आज दरभंगा शिक्षा व्‍यवसाय करनेवाले दलालों के लिए सबसे बडा बाजार बन गया है। शहर के बाजार में एक आर्ट कॉलेज खोलने का विरोध तिरहुत सरकार को इतना महंगा पडा कि शहर का मुख्‍य बाजार तो नष्‍ट हो ही गया, शहर में स्‍थापित तीन तकनीकी संस्‍थानों को भी नष्‍ट कर दिया गया और आरोप हमेशा की तरह तिरहुत सरकार पर मढ दिया। अब अगर कोई तकनीकी संस्‍थान की मांग करता है तो उन तीनों संस्‍थानों की आत्‍मा खुद से यही पूछती है कि कहीं ये रुढीवादी के वंशज तो नहीं हैं...।

2 टिप्पणियाँ:

Unknown ने कहा…

मेरे ज्ञान में कुछ इजाफा हुआ ... इसके लिए दीदी को धन्यवाद

Sohan Singh Bakshi ने कहा…

प्रणाम दरभंगा की धरती को। रावलपिंडी से ��

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